अधिकारों की माँग के नाम पर धरना प्रदर्शन, तोड़ फोड़, सरकारी व जनता की संपत्ति को नुकसान पहुंचाना हमारे यहाँ साधारण सी बात बन गयी है। तरह तरह के अधिकारों की माँग उठती है। कभी अपनी जाति के लिए आरक्षण की मांग पर देश जलता है तो कभी राष्ट्र की संप्रभुता और सेना पर आरोप लगा कर तथाकथित अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की माँग कर उत्पात मचाया जाता है। हर तरफ़ सिर्फ अधिकारों की ही पुकार है। विचारों की परिधि और चिंतन मात्र मिलने और अधिकार प्राप्त करने तक ही सीमित रह जाते हैं। प्राप्त करने मात्र की प्रलोभनकारी प्रबल प्रवृत्ति के समक्ष देने और कर्तव्य निर्वहन की प्रवत्ति क्षीण हो चुकी है। नागरिक भावना न जाने कितने पीछे छूट चुकी है।
किसी भी व्यक्ति का उसके छोटे से परिवार के साथ अटूट बन्धन अधिकारों और कर्तव्यों दोनों पर ही निहित होता है। हमारा राष्ट्र भी हमारा परिवार है, एक बड़ा परिवार, और किसी भी नागरिक का समाज और राष्ट्र से बन्धन उसके अधिकारों के साथ ही कर्तव्यों से मिलकर ही शशक्त बनता है। अधिकार और कर्तव्य दोनों एक ही सिक्के के दो भाग हैं जो साथ साथ चलते हैं। लोकतंत्र में विश्वास रखने वाले एक जागृत नागरिक को अधिकारों के प्रति सचेत रहकर सिर्फ प्राप्त करना ही नहीं अपितु कर्तव्य के रूप में देने की प्रवत्ति पर भी विश्वास रखना होता है। स्वयं की सुख सुविधाओं की चिंता के साथ ही दूसरों के विचार, अधिकार और भावनाओं का सम्मान भी प्राथमिकता पर होना चाहिए।
आप एक अच्छे और जागृत नागरिक से जैसे व्यवहार और आचरण की आशा रखते हैं उसी आचरण के अनुसार आपको स्वयं को भी परिभाषित करना पड़ेगा। एक आदर्श और उत्तरदायी नागरिक की भांति व्यवहार और कर्म करना पड़ेगा। अधिकार और कर्तव्यों का ज्ञान ही पर्याप्त नहीं है कर्म भी करना पड़ेगा। ज्ञान के साथ जब तक कर्म का समावेश नहीं होता तो ऐसा ज्ञान महत्वहीन कहलाता है।
आइये सर्वप्रथम संविधान के अनुसार अपने मौलिक अधिकारों को जानें। कहा जाता है कि भारत में मौलिक अधिकारों की माँग अंग्रेजी शाशन के समय ही प्रारम्भ हो गयी थी। समय समय पर विभिन्न संशोधनों के बाद वर्तमान समय में हमारे संविधान के भाग तीन में सन्निहित अधोलिखित ६ मौलिक अधिकारों को सूचीबद्ध किया गया है-
१. समानता का अधिकार, अनुच्छेद १२ से अनुच्छेद १८
इनमें विधि के समक्ष समता, धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर विभेद व पक्षपात का प्रतिषेध, लोक नियोजन के विषय में अवसर की समता, अस्पृश्यता का अंत एवं उपाधियों का अंत जिसके अंतर्गत सेना व शिक्षा सम्बन्धी उपाधियों के अतिरिक्त राज्य अन्य कोई उपाधि नहीं प्रदान कर सकता सम्बन्धी अन्य विषय सम्मिलित हैं।
२. स्वतंत्रता का अधिकार, अनुच्छेद १९ से अनुच्छेद २२
वाक्–स्वातंत्र्य आदि विषयक कुछ अधिकारों का संरक्षण,अपराधों के लिए दोषसिद्धि के संबंध में संरक्षण, शान्तिपूर्ण एवं निःशस्त्र सभा या सम्मेलन करने की स्वतंत्रता, संघ या समुदाय बनाने की स्वतंत्रता, बिना रुकावट सम्पूर्ण राष्ट्र भ्रमण की स्वतंत्रता, बन्दीकरण से संरक्षण की स्वतंत्रता, प्राण और दैहिक स्वतन्त्रता का संरक्षण इनमें वर्णित किया गया है।
३. शोषण के विरुद्ध अधिकार, अनुच्छेद २३ एवं अनुच्छेद २४
मानव के दुर्व्यापार और बलात्श्रय का प्रतिषेध, कारखानों आदि में बालकों के नियोजन का प्रतिषेध वर्णित किया गया है।
४. धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार , अनुच्छेद २५ से अनुच्छेद २८
इन अनुच्छेदों के अंतर्गत अंत: करण की और धर्म के अबोध रूप में मानने, आचरण और प्रचार करने की स्वतंत्रता, धार्मिक कार्यों के प्रबंध की स्वतंत्रता, कुछ शिक्षण संस्थाओं में धार्मिक शिक्षा या धार्मिक उपासना में उपस्थित होने आदि के बारे में स्वतंत्रता के अधिकारों को वर्णित किया गया है।
५. शिक्षा और संस्कृति का अधिकार, अनुच्छेद २९ एवं अनुच्छेद ३०
अल्पसंख्यक वर्गों के हितों का संरक्षण, शिक्षण संस्थाओं की स्थापना और प्रशासन करने का अल्पसंख्यक वर्गों का अधिकार आदि का वर्णन किया गया है।
६. संवैधानिक उपचारों का अधिकार, अनुच्छेद ३१ एवं अनुच्छेद ३२ में वर्णित किया गया है।
यद्यपि ये मौलिक अधिकार हैं पर स्थिति परिस्थिति अनुसार इनका दुरुपयोग न हो अतः इन की कुछ सीमाएं भी तय की गई हैं।
इसी प्रकार किसी भी नागरिक के ११ मौलिक कर्तव्यों को भी संविधान में ४२ वें संशोधन के उपरांत भाग ४ के अनुच्छेद ५१ क के अंतर्गत सूचीबद्ध किया गया है।
१. प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य होगा कि वह संविधान का पालन करे और उसके आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्र ध्वज और राष्ट्र गान का आदर करें.
२. स्वतंत्रता के लिए हमारे राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों को हृदय में संजोए रखे और उनका पालन करे.
३. भारत की प्रभुता, एकता एवं अखंडता की रक्षा करे और उसे अक्षुण्ण रखे.
४. देश की रक्षा करे और आवाह्न किये जाने पर राष्ट्र सेवा के प्रति समर्पित रहे।
५. भारत के सभी लोगों में समरसता और समान भ्रातृत्व की भावना का निर्माण करे जो कि धर्म, भाषा, प्रदेश व वर्ग के भेदभाव पर आधारित न हो एवं उन सभी प्रथाओं का त्याग करे जो स्त्रियों के सम्मान के विरुद्ध हो
६. हमारी सामाजिक संस्कृति की गौरवशाली परंपरा का महत्व समझे और उसका परिरक्षण करे।
७. प्राकृतिक पर्यावरण, वन, जीव, नदी इत्यादि की रक्षा और उसका संवर्धन करे तथा प्राणी मात्र के प्रति दया भाव रखे।
८. वैज्ञानिक दृष्टिकोण और ज्ञानार्जन, मानवतावाद व सुधार की भावना का विकास करे.
९. सार्वजनिक संपत्ति को सुरक्षित रखे व हिंसा से दूर रहे।
१०. व्यक्तिगत एवं सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में उत्कर्ष की ओर बढ़ने का सतत प्रयास करे जिससे राष्ट्र प्रगति कर सके।
११. माता-पिता या संरक्षक द्वारा ६ से १४ वर्ष के बच्चों हेतु प्राथमिक शिक्षा के अवसर प्रदान करना इत्यादि।
अधिकारों की आवश्यकता सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और राजनैतिक न्याय के लिए है परन्तु कर्तव्य निर्वहन के बिना अधिकारों की मांग करना न ही नीतिसंगत कहलायेगा न ही न्यायोचित।
कुछ छोटी छोटी परंतु महत्वपूर्ण बातों को ध्यान में रखकर हम एक आदर्श नागरिक की भांति राष्ट्र निर्माण में सहयोग कर सकते हैं। उदाहरण के रूप में आप बिस्कुट, चिप्स, चॉकलेट, केले और पानी की बोतल खरीदने को तो अपना अधिकार मानते हैं पर उनके छिलके और उपयोग की गई खाली बोतल को कूड़े दान में डालने के कर्तव्य से मुँह मोड़ लेते हैं। शादी पार्टी में खाना खाते समय अधिकार पूर्वक अपनी भूख और आवश्यकता से कहीं अधिक खाना थाली में भरकर बाद में फेंक देते हैं और अनगिनत लोग जो भुखमरी से मर रहे हैं उनको दो रोटी खिलाने के कर्तव्य से मुँह चुरा लेते हैं। अच्छी सड़क, बिजली पानी सुविधा रोजगार सब चाहिए, अधिकार है, पर समय पर कर भुगतान का दायित्व याद नहीं रह जाता। संविधान का पालन करना, यातायात नियमों का पालन करना, आदर्श विचारों को बढ़ावा देना एवं अनुसरण करना, और सौहार्दता व समान बंधुत्व की भावना को आगे बढ़ाना हमारे ही कर्तव्य हैं।
भारत को स्वच्छ, सुंदर, स्वस्थ, शिक्षित और शक्तिशाली बनाने के लिए अपने कर्तव्यों को भी जानें और उनका निर्वहन करें। राजनीति नौकरशाही व अन्य सभी जगह फैले भ्रष्टाचार के विरुद्ध लोगों को जागरूक बनाएं। आस पास यदि किसी के साथ अन्याय हो रहा है तो उसकी सहायता करें, उसकी आवाज बनें। अपने गली मोहल्ले गाँव शहर को स्वच्छ रखने का हर संभव प्रयास करें। यदि व्यक्तिगत रूप से समस्या का समाधान नहीं निकल सकता तो संगठित होकर स्थानीय नगर निगम, ग्राम पंचायत या अन्य उचित मंच तक अपनी शिकायत रखें और अन्य लोगों को भी जागृत करें। बच्चे , बुजुर्ग व महिलाओं की रक्षा का दायित्व भी हमारा ही है। राष्ट्रप्रेम और राष्ट्र सेवा, पर्यावरण संरक्षण इत्यादि के लिए जनमानस को प्रेरित करना हमारा ही कर्तव्य है।
कर्तव्यों को सीमा में नहीं बाँधा जा सकता। मौलिक कर्तव्यों के साथ ही सामाजिक एवं नैतिक कर्तव्यों का निर्वहन भी अत्यंत महत्वपूर्ण है जिनका निर्धारण व्यक्ति अपनी समझ से करता है। कर्तव्य पालन को धर्म की तरह लिया जाना चाहिए। कर्तव्यों की पहचान अंतरात्मा से भी की जानी चाहिए। आइये संगठित होकर जनमानस को उनके अधिकारों और कर्तव्यों दोनों का बोध कराने के लिए जन उद्घोष सेवा संस्थान को शशक्त बनाएं। सर्व प्रथम स्वयं का आकलन करें कि क्या आप स्वयं अपने अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति सचेत हैं ? तत्पचात लोगों को समाज के प्रति उनके दायित्व को समझाने और निर्वहन कराने की दिशा में आगे बढ़े।
वन्दे मातरम।