किसी धर्म या समाज को कमजोर करना है तो सबसे पहले उससे जुड़े लोगों का स्वाभिमान तोड़ा जाता है। ऐसा धीमा विष दिया जाता है जिसमें उस समाज से जुड़े लोग अपने ही देश, अपने ही पूर्वज, संस्कृति , भाषा, आस्था, पूजा पद्धति ,देवता व आचार विचार एवं स्वयं की जीवन शैली का मज़ाक बनाने लगते हैं और अपना ही महान इतिहास जिसके गौरव के लिए पूर्वजों ने न जाने कितने त्याग और बलिदान दिए होंगे उनको अपमानित करने वाला लगने लगता है। अपने ही महापुरुषों का मज़ाक बनाने में उनको अथाह संतुष्टि मिलने लगती है।
भारत में धर्म परिवर्तन कराने वाली ईसाई मिशनरी और इस्लामिक संस्थाएं ऐसे ही योजनाबद्ध तरीके से सनातन धर्म और भारत की जड़ों को काटने का कार्य सदियों से करती आ रही हैं जिनको समय समय पर और परिस्थिति के अनुसार राजनीतिक संरक्षण प्राप्त होता रहा है। गन्दी दमनकारी राजनीति और स्वार्थी राजनीतिज्ञों ने अपने ही राष्ट्र और समाज को बेचने और सांस्कृतिक जड़ों को काटने का काम किया है। धर्म परिवर्तन का ये खेल अब खुलकर सामने आ रहा है। योजनाबद्ध लव जिहाद की बढ़ती घटनाओं से हम सभी परिचित हैं ही। लव जिहाद की सैकड़ो घटनाएं रोज घटित हो रही हैं। सुप्रीम कोर्ट से लेकर मीडिया और संसद तक इस पर बहस हो रही है पर इसको रोकने के लिए कोई कड़ी कार्यवाही नही की जा रही। न जाने कितनी मासूम और नासमझ लड़कियों का जीवन बर्बाद हो चुका है और रोज हो रहा है। षड्यंत्रकारी अपना काम भी कर जाता है और कानून के लूप होल्स , कानून व्यवस्था की लाचारी व तुष्टिकरण पर आमादा राजनीतिज्ञों का सहारा लेकर बच निकलता है फिर अपने आकाओं से मोटा पुरस्कार पाकर ऐश की जिंदगी बिताता है और एक बार फिर निकल पड़ता है अगले शिकार के लिए। मीडिया चुप्पी साध लेती है, मुद्दा तथाकथित अभिव्यक्ति की आजादी और धार्मिक स्वतंत्रता के नाम पर दब जाता है, वहीं नेता अपनी सुविधानुसार एक बार फिर जनता के बीच हाज़िर होते हैं नए एजेंडे के साथ, बाकी जज साहब का क्या वो तो पटाखा दही हांडी पर प्रतिबन्ध और पद्मावती को पद्मावत कराने की फटाफट कार्यवाही में जुटे होते हैं।
कश्मीर से लेकर पश्चिम बंगाल, असम , केरल ,पश्चिमी उत्तरप्रदेश या फिर तमिलनाडु सहित पूरे दक्षिण भारत में ही नही बल्कि सम्पूर्ण भारत में बड़ी बड़ी इस्लामिक संस्थाओं , मौलानाओं और ईसाई मिशनरियों द्वारा तेजी के साथ अलग अलग रास्तों से अलग अलग तरीकों से हिंदुओं का धर्म परिवर्तन कराया जा रहा है। कभी तलवार और बन्दूक की नोक पे तो कभी शिक्षा और सेवा के नाम पर। साउथ अफ्रीका का एक विचारक कहता है “यूरोपियन देशो के पास चार तरह की सेनाये हैं थल सेना,जल सेना,वायु सेना और चर्च। वह सबसे पहले चर्च को भेजते हैं जो उनके लिए शिक्षा एवं सेवा के नाम पर जीत का माहौल तैयार करती है और धीरे-धीरे वह समस्त प्राकृतिक संसाधनों पर कब्जा कर लेते हैं। चर्च और षड्यंत्रकारियों का मकड जाल इतनी धूर्तता से अपना काम स्थानीय बौद्धिक वर्ग में करता है की वहाँ की संस्कृति कब नष्ट हो गयी पता ही नही चलता। ईसाइयत का खेल खेलने के लिए विदेशों से हज़ारों करोड़ रुपया थोक के भाव भारत भेजा जाता है सिर्फ इतना ही नहीं , इनको धन की कमी न हो इसके लिए भारत मे ही बैठे हिंदुत्व विरोधी और राष्ट्र के दुश्मन इनको अथाह धन उपलब्ध कराते हैं। धर्मान्तरण के लिए सबसे पहले निशाना बनाया जाता है गरीब दलित और आदिवासियों को जिनकी गरीबी और अशिक्षा को हथियार बना कर, धन का लालच देकर, बहला फुसलाकर कर हाथों में बाइबल और क्रॉस थमा दिया जाता है और उनको अपनी ही संस्कृति व धर्म का दुश्मन बना दिया जाता है, आप कह सकते हैं कि धीरे धीरे उनको मानसिक विकलांग बना दिया जाता है। इन सबके लिए ये ईसाई मिशनरी तरह तरह की पुस्तकों, प्रचार माध्यमों, फिल्मों कार्यक्रमों व चर्च में होने वाली नियमित बैठकों के साथ साथ स्थानीय प्रभावशाली व्यक्तियों का सहारा लेते हैं और नितांत योजनाबद्ध तरीके से लोगों के दिमाग मे उनके ही गौरव पूर्ण इतिहास, देवी देवताओं तीर्थों और महापुरुषों के प्रति विष भरने के लिये प्रशिक्षण सत्र चलाये जाते हैं और वो इस कार्य मे सफल भी हैं।
वहीं इस्लामिक षड्यंत्रकारी हिंदुओं के धर्म परिवर्तन के लिए लव जिहाद से लेकर हर वो हथकंडा अपनाते हैं जिससे वो भारत को एक इस्लामिक राज्य घोषित कर सकें और उनका दारुल-ए-इस्लाम का सपना पूरा हो सके। आपको जानकारी अवश्य होगी कि भारत के आस पास के लगभग सभी देश पहले वृहत्तर भारत के ही उपनिवेश थे जहाँ सनातनी विचारधारा चलती थी आज उनमें से कई देश कट्टर इस्लामिक देश बन चुके हैं जहाँ सिर्फ शरिया कानून चलता है और बाकी कुछ देश पूर्ण इस्लामिक राष्ट्र बनने की कगार पर हैं। उन देशों में सुखी रहने का अधिकार सिर्फ बहुसंख्यकों अर्थात मुसलमानों को है बस, बाकी सब गुलाम हैं। मौलवियों और इस्लामिक संगठनों द्वारा अधिकांशतया धर्म परिवर्तन सीधे सीधे डरा धमका कर जबरदस्ती कराया जाता है या फिर बेरोजगार एवं सामाजिक व आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों की मजबूरी का फायदा उठा कर उनको बरगलाया जाता है और खुदको उनका हितैषी बता कर उनको दिग्भ्रमित किया जाता है। इन दिनों भारत को तोड़ने का षड़यंत्र जोरों पर है। स्थानीय नेताओं व संगठनों की सहायता से भारत मे जातिवाद का विष तेजी से फैलाया जा रहा है, निःसन्देह जातिवाद भारत की कमजोरी रहा है और षड़यंत्रकारी इसी कमजोरी का फायदा उठाकर दलित कार्ड खेलकर उनको हिन्दुओं से अलग धर्म वाला बताने में लगे हैं । पिछड़े एवं नासमझ तथाकथित दलितों का दिमाग परिवर्तन करके उनको नास्तिक बनाया जाता है फिर कैसे भी लालच देकर या डरा धमकाकर पूरे के पूरे गाँव को ही धीरे से मुसलमान या ईसाई बना लिया जाता है। दोनों ही अपनी अपनी गोटी फेंकने में व्यस्त हैं जिसकी चल जाये उसकी जीत। तथाकथित दलितों से मेरा तात्पर्य है कि जब भारत मे हम समानता की बात कर रहे हैं तो इस दलित शब्द का क्या महत्व रह जाता है? भारतीय संविधान और व्यवस्था में दलित शब्द पर ही पूर्ण प्रतिबंध क्यों नही लगा दिया जाता?
वापस आते हैं विषय पर, पिछले सभी आंकड़े उठा लीजिये खुद से भी छानबीन कर लीजिए जिन क्षेत्रों में पहले 97-98 प्रतिशत हिन्दू थे, कुछ दशकों में ही वहाँ अब मात्र गिने चुने हिन्दू परिवार ही बचे हैं जो कि ईसाई और मुस्लिम संगठनों से डर डर कर जीवन बिता रहे हैं। इतने कम समय में ऐसा कैसे हुआ ? उत्तर है धर्म परिवर्तन का व्यापार और जनसंख्या जिहाद ! वैसे तो मेरे अनुसार धर्म की परिभाषा ही अलग है किसी सम्प्रदाय या मजहब को धर्म नही कहते धर्म शब्द अपने मे बहोत कुछ समेटे हुए है पर वो अलग विषय है परन्तु फिर भी जो जिस संप्रदाय या धर्म में जन्मा उसका धर्म तो जीवन पर्यंत वही रहेगा वो पल पल अपना धर्म या मजहब कैसे बदल सकता है? अभी माननीय न्यायालय ने भी एक महिला के जाति प्रमाण पत्र के केस की सुनवाई के दौरान वक्तव्य दिया कि “जो जिस जाति में जन्मा शादी होने के बाद अथवा जीवन में कभी भी उसकी जाति कैसे बदल सकती है ? उसकी जाति तो जीवन पर्यंत वही रहेगी” और उस महिला को नौकरी से हाथ धोना पड़ा क्योंकि वो सामान्य वर्ग की महिला थी और किसी दलित से शादी करके आरक्षण का लाभ ले रही थी। चलिए फिर भी मान लेते हैं कि व्यक्ति धार्मिक स्वतंत्रता की गुहार लगाते हुए धर्म परिवर्तन कर सकता है तो धर्म परिवर्तन अगर अपनी मर्ज़ी से हो अपनी आस्था और विचारों के आधार पर हो तो कोई आपत्ति नही है पर यहां तो सर्व विदित है कि इस छूट का दुरुपयोग भारत को कमजोर करने में किया जा रहा है। प्रत्येक राष्ट्र की एक आत्मा होती है और भारत की आत्मा सनातनी है जिसको नष्ट करने के प्रयास किये जा रहे हैं । विदेशों में बैठे धर्म के व्यापारी खुलकर व्यापार कर रहे हैं और भारत को धर्म परिवर्तन की मंडी बनाया हुआ है। जगह जगह धर्म परिवर्तन की दुकानें चल रही हैं जिसमें हमारी चुप्पी, लचर कानून व्यवस्था और राजनीतिक इक्षाशक्ति की कमी के कारण हम उनका शिकार बनते जा रहे हैं। यदि आप हम इस षड़यंत्र को सफल होने से रोकने के लिए एक स्वर में संगठित आवाज नहीं उठाएंगे तो कौन करेगा? स्थिति काफी हद तक बिगड़ चुकी है, धर्म परिवर्तन के ठेकेदार इतने कमजोर नहीं रहे कि हम तुरंत राष्ट्र को खंडित करने वाले इस षड़यंत्र को रोक पाएंगे। इसके लिए लड़ाई लड़नी पड़ेगी सोई हुई सरकारों को आगाह करना पड़ेगा।अपनी कमियों का भी आकलन करना पड़ेगा। छुआ छूत ऊंच नीच और अंधविश्वास पूर्णतया समाप्त करके नई पीढ़ी में समानता और एकता की भावना जगानी होगी। आने वाली पीढ़ियों का भविष्य अंधकारमय और गुलाम न बने इसके लिए स्वयं को जगाने की आवश्यकता है। संगठित होकर धर्म परिवर्तन का विरोध करिये। धर्म परिवतर्न पर प्रतिबंध का कानून ही एक मात्र उपाय बचा है।
भारत सरकार , प्रदेश सरकार ,सर्वोच्च न्यायालय, बुद्धिजीवी वर्ग, मीडिया व अन्य सभी जो कि भारत की उन्नति के लिए नीति निर्माता हैं उनसे हमारा निवेदन है कि इस विषय पर ध्यान केंद्रित करें और इस गम्भीर विषय जो कि राष्ट्र की सुरक्षा एकता अखंडता सौहार्द और भारत की आत्मा से जुड़ा है उस पर विचार करके एक ऐसा कड़ा एवं प्रभावी कानून बनायें जिसमें धर्मान्तरण को पूर्ण रूप से प्रतिबन्धित किया जाय।
कुलदीप तिवारी
राष्ट्रीय अध्यक्ष
जन उद्घोष सेवा संस्थान