दुनिया के आठ सबसे अमीर व्यक्तियों की कुल सम्पदा विश्व की आधी जनसँख्या लगभग 4 अरब, जो कि  सबसे निर्धन की श्रेणी में आते हैं के बराबर है और विश्व के मात्र 1 प्रतिशत धनवान, विश्व की बांकी 99 प्रतिशत जनसँख्या से भी अधिक सम्पदा के मालिक हैं। एक पत्रिका ऑक्सफैम द्वारा अनुमान के अनुसार विश्व में अरबपतियों की संख्या 1500 से अधिक है जिसमें 560 सिर्फ यूनाइटेड स्टेट्स में हैं।

भारत में भी अरबपतियों की सँख्या 100 के ऊपर है जिनमें से 28 सिर्फ मायानगरी मुम्बई से हैं। ये वो आंकड़ें हैं जो सामने दिख रहे हैं। कहा जाता है कि भारत में काले धन की एक समानांतर अर्थव्यवस्था चलती है हालाँकि केंद्र सरकार के प्रयासों के बाद अब उसमें कमी अवश्य आयी है।

उक्त आंकड़ों से तात्पर्य यह है कि एक तरफ जहाँ दुनिया में शीर्ष पर बैठे मात्र कुछ लोग हर उस सुख सुविधा और ऐशोआराम की अधिकता में जीवन बिता रहे हैं जो कि विश्व की आधी जनसँख्या की कल्पना से भी बाहर है वहीं दूसरी तरफ बड़ी सँख्या ऐसे लोगों की है जो भुखमरी, कुपोषण, गन्दगी और बीमारियों के साथ स्तरहीन जीवन जीने को मजबूर हैं। यह भेदभाव कहाँ से आया ? धनवान और निर्धन के बीच ये गहरी खाँयी दिन प्रतिदिन और गहराती जा रही है। छोटे बड़े विभिन्न राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय मंचों पर चर्चाएं होती हैं, गरीबी उन्मूलन व अन्य कई नामों से अनगिनत कार्यक्रम होते हैं, न जाने कितने दिवस भी गरीबी को समर्पित हैं, पर सिर्फ सांकेतिक।

यह कहना भी सर्वथा अनुचित होगा कि विश्व में विभिन्न सरकारें और उत्तरदायी संस्थाएं प्रयासरत नहीं हैं, पर वास्तव में सार्थक परिणाम मिलते नही दिख रहे हैं। इसके कई कारणों पर मैं पहले भी चर्चा कर चुका हूं उनमें सबसे बड़े  कारणों में से एक है बढ़ती जनसँख्या। अगर विश्व की बढ़ती जनसँख्या पर रोक नही लगाई गई  तो निकट भविष्य में स्थिति अनियंत्रित होने वाली है।

बात भारत की करें तो वर्तमान स्थिति अत्यंत चिंताजनक है। अथाह जनसँख्या वृद्धि तथा आधारभूत सुविधाओं की आवश्यकता एवं आपूर्ति के बीच बढ़ते अंतर के कारण स्थिति सुधरती नहीं दिख रही। किसानों की स्थिति दिनप्रतिदिन बदहाल हो रही है, वो आत्महत्या को मजबूर हो रहा है। झुग्गी झोपड़ियों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है। सड़क पर भीख मांगने वालों में निर्बल, जरूरतमंद और वृद्ध जनों के साथ नौजवानों और बच्चों की संख्या भी लगातार बढ़ रही है। मलिन बस्तियों में बीमारियों की भरमार है,  कुपोषित बच्चों की संख्या कम नहीं हो रही है। बात हम सर्व शिक्षा अभियान की करते हैं पर सच्चाई यह है कि धन के अभाव में बड़ी संख्या अभी भी किताबों और विद्यालय से वंचित है। गाँव और  मलिन बस्तियों में रह रहे बच्चे सुविधाओं और धन के अभाव में काम पर लगा दिए जाते हैं। चिकित्सा विज्ञान में भी हम प्रगति पर हैं, बड़े बड़े चिकित्सालय और चिकित्सा शिक्षा संस्थान बन रहे हैं, फिर भी स्वास्थ्य व चिकित्सा सुविधाओं से अति निर्धन वर्ग आज भी वंचित रह जाता है।

हम एक संगठन के रूप में या व्यक्तिगत रूप से अचानक सब कुछ तो नहीं बदल सकते पर परिवर्तन का प्रयास अवश्य कर सकते हैं। अपने एक छोटे से प्रयास से एक नई आश जगा सकते हैं। निर्धन एवं असहाय की सहायता मात्र सामाजिक दायित्व ही नहीं, अपितु मानव धर्म भी है। बड़ी संख्या ऐसी है जिनको एक समय का खाना नही मिल पा रहा, तन पर कपड़े नहीं हैं, शादी पार्टियों से बचा हुआ फेका हुआ जूठन उठा कर खाने को मजबूर हैं। कूड़ा बीनने वाले बच्चे आपको हर मोड़ पर दिख जाते हैं, कूड़े के ढेर में पड़ा खाना खाने को मजबूर हैं। महिलाएं बच्चे और वृद्ध सर्दी और बारिश के मौसम में एक एक कपड़े के लिए तरसते हैं, फुटपाथ पर और नाले के किनारे जीवन बिताने को मजबूर हैं। अपनी आय का एक छोटा भाग यदि हम नियमित रूप से इन असहाय और निर्धनों की सहायता में लगाते हैं तो आत्म सन्तोष एवं आत्मसुख तो मिलता ही है साथ ही किसी को सहारा मिलता है। सहायता के रूप में आप कपड़े, खाना, अन्न जैसे आटा दाल चावल दलिया बिस्किट इत्यादि देकर या अन्य माध्यमों से सहायता कर सकते हैं। किसी निर्बल के चेहरे पर आपके माध्यम से एक मुस्कुराहट आपको वह सुख देती है जो किसी पाँच सितारा होटल की सुविधाएँ और सिनेमाघरों का मनोरंजन कभी नहीं दे सकता। किसी दुर्बल का सहारा बनना उसकी दृष्टि में आपको ईश्वर जैसी अनुभूति कराता है। दया, करुणा, परोपकार ईश्वरीय गुण हैं।

जन उद्घोष सेवा संस्थान के माध्यम से हम सदैव इस भावना को आगे बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध हैं। समय समय पर अनेकों ऐसे कार्यक्रम संस्था द्वारा किये जाते रहे हैं और आगे भी निरन्तर होते रहेंगे। इसके लिए सभी को आगे आना पड़ेगा। हाथ से हाथ मिलाकर, संगठित रूप से की गई सहायता अधिक प्रभावशाली होती है। संगठन से जुड़कर आर्थिक योगदान के साथ साथ श्रमदान और मनोवैज्ञानिक सहयोग करें तथा दूसरों को भी इसके लिए प्रेरित करें।

वन्दे मातरम।