निःसन्देह पिछले कुछ वर्षों में भारत ने स्वच्छता, शिक्षा और स्वास्थ्य तीनों ही विषयों पर काफी प्रगति की है। प्रधानमंत्री माननीय श्री नरेन्द्र मोदी जी ने स्वच्छता को बढ़ावा देने के लिए स्वच्छ भारत अभियान के अंतर्गत जो कार्यक्रम और अभियान चलाए हैं, निःसन्देह सराहनीय प्रयास हैं। आज बड़े बुजुर्ग, युवा एवं छात्र छात्राएं सभी इससे प्रभावित और जागृत भी दिख रहे हैं। यह भविष्य के लिए अच्छा संकेत है। पर वास्तव में अभी भी सड़क पर पान मसाला खा कर कहीं भी थूकने और किसी भी कोने में खड़े होकर मूत्र त्याग करने की आदतों से बाहर नहीं निकल पाए हैं हम। शौचालय जाकर साबुन से हाथ धोना होता है, शौचालय में कुंडी लगाकर बैठते हैं और सड़क किनारे शौच करना सभ्यता और स्वच्छता दोनो के लिए उचित नहीं है, ये बताने के लिए सरकार को करोड़ों रुपये के विज्ञापन देने पड़ते हैं और बसों के पीछे लिखकर पर्चे चिपकाने पड़ते हैं, ये चिंतनीय है। हमारी प्राचीन संस्कृति में स्वच्छता को महत्व दिया गया है , प्राचीन ग्रन्थों और कथाओं में स्वच्छता के महत्व का बखान किया गया है पर आज की संक्रमित संस्कृति और दिनचर्या में हम गन्दगी के वशीभूत हो चुके हैं। अगर पाश्चात्य सभ्यता की भी नकल करते हैं तो सिर्फ पिज़्ज़ा बर्गर खाने और फटे कपड़ों के फैशन को न अपनाकर उनकी अच्छी आदतों को भी अपनाना सीखें। पश्चिमी देशों से भी सभ्यता, आदर्श नागरिक भावना और स्वच्छता की आदत का अनुसरण किया जा सकता है। चॉकलेट, केले, चिप्स, पानी की बोतल खरीदने और खाने पीने के बाद छिलके और खाली बोतल का सही जगह निस्तारण भी तो हमारा ही दायित्व बनता है। चाय पीकर और चाट, मटर खा कर पत्तल व दोने कूड़े दान में फेकनें की आदत कब डालेंगे?
भले ही घर का कूड़ा उठाने को नगर निगम की गाड़ी आती हो पर सफाई के बाद पॉलीथिन में कूड़ा भरकर बालकनी या छत से सड़क में या घर के पिछवाड़े फेंकने में जैसे अलग ही आंनद आता हो? अपने घर का आंगन साफ कर कूड़ा बगल वाले के दरवाजे फेंकने का आत्मसुख गजब है! गली मोहल्ले और पार्क के कोने में अगर बदबूदार कूड़े के ढेर न मिलें तो जैसे मोहल्ले की शोभा में कमी सी रह जाती हो! अरे !! क्या है ये सब ? जब तक हम स्वयं में सुधार नहीं करेंगे तब तक परिवर्तन कैसे आएगा? आपके घर की सफाई करने क्या नगर निगम के अधिकारी या सरकार स्वयं आएगी ? गन्दगी खुद फैलाएंगे और दोष देंगे पड़ोसी को, सरकार को ! मित्रों आदतों में सुधार करिये । जहां आप अकेले परिवर्तन नहीं ला सकते वहाँ सङ्गठन के रूप में कार्य करिये।
आते हैं शिक्षा पर। भारत में शिक्षा का स्तर सुधारने के लिए अभी काफी परिश्रम की आवश्यकता है। विशेषकर सरकारी विद्यालयों में स्थिति सुधरने का नाम नहीं ले रही है। प्रतिदिन टीवी व अखबार में अलग अलग गाँव शहर और प्रदेशों की खबरें प्रसारित होती हैं। कहीं शिक्षकों का स्तर मेल नहीं खाता तो कहीं सुविधाओं के नाम पर बड़ा शून्य दिखाई पड़ता है। भारत के कई प्रदेशों में स्कूलों के नाम पर सिर्फ उपहास किया जा रहा है। एक ही कमरे में पाँच पाँच कक्षायें चलती हैं एवं एक अध्यापक जिसको अपने प्रधानमंत्री का नाम व राज्य की राजधानी नहीं पता है वह पांचों कक्षायें एक साथ पढ़ा रहा होता है। मैं ये नहीं कह रहा कि सारे शिक्षक खराब होते हैं। कहीं कहीं तो पीएचडी और नेट उत्तीर्ण अध्यापक जिनको महाविद्यालय में सेवा देनी चाहये वो प्राइमरी के बच्चों को पढा रहे हैं, पर वो अलग विषय है। गाँव और झुग्गी झोपड़ियों में रहने वाले बच्चों को स्कूल तक पहुंचाने में सरकारी तंत्र अभी असफल हैं। निजी विद्यालय सिर्फ व्यापार के लिए ही चलाये जा रहे हैं। अमीरों को हाथों हाथ लेने वाले निजी विद्यालय गरीबों की पहुंच से बहोत दूर हैं। शिक्षा क्षेत्र में अभी भारत मे काफी बदलाव और प्रयासों की आवश्यकता है। गाँवों में ऐसे विद्यालय अभी भी हैं जहाँ पैसे लेकर बच्चों को फ़र्ज़ी अंकपत्र बना कर दे दिए जाते हैं।
भौतिक व किताबी ज्ञान के साथ साथ नैतिक शिक्षा एवं एक अच्छा नागरिक बनने के लिए प्रेरित करना भी आवश्यक है। बच्चों में अपने राष्ट्र, मातृभूमि, संस्कृति, धर्म, आध्यात्म और समाज के प्रति लगाव व दायित्व की समझ बचपन से ही होनी चाहिए। हम आप संगठित होकर प्रयास करें तो हमारे थोड़े प्रयासों से शिक्षा की दिशा में अच्छा कार्य किया जा सकता है।
स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता लाने में भी शिक्षा एवं स्वच्छता दोनों का महत्वपूर्ण योगदान है। किसी शारीरिक रोग से मुक्त रहना मात्र ही स्वास्थ्य को परिभाषित नहीं करता अपितु मानसिक व सामाजिक रूप से स्वस्थ और तंदुरुस्त रहना भी स्वास्थ्य की ही श्रेणी में आता है। बच्चों व अन्य सभी नागरिकों को स्वास्थ्य के प्रति सचेत रहने के लिए स्वच्छता, नियमित व्यायाम और स्वस्थ खानपान की आदतों के बारे में बताएं। गाँव और मलिन बस्तियों में जा कर उनको स्वास्थ्य और स्वच्छता के बारे में जागृत करना अवश्य|
सभी का थोड़ा थोड़ा योगदान होना चाहिए। समाज सुधार का दायित्व किसी एक का नहीं होता ये तो संगठित प्रयास से होता है।
मित्रों जन उद्घोष सेवा संस्थान के माध्यम से हम शिक्षा ,स्वच्छता एवं स्वास्थ्य के बारे में लोगों को जागृत करने का हर सम्भव प्रयास कर रहे हैं। समय समय पर यथा सम्भव कार्यक्रम व सत्र चलाकर अधिक से अधिक लोगों तक पहुंच बनाने का प्रयास है। कृपया सहयोग व समर्थन करें।
वन्दे मातरम|